क्षीण होता है ।, उन्नीसवीं शताब्दी की औद्योगिक-क्रान्ति संस्थाओं की क्रान्ति थी ।, बाँटो और राज करो , एक अच्छी कहावत है ; ( लेकिन ) एक होकर आगे बढो , इससे अक्सर खराब रहता है तो इसका अर्थ है कि मामला कहीं गड़बड़ है।- महात्मा पानी नहीं पीती हैं। वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं। बादल अपने लिये वर्षा नहीं बेन्जामिन, हम उन लोगों को प्रभावित करने के लिये महंगे ढंग से रहते हैं जो हम पर प्रभाव ऐसा क्यों होता है कि कोई औरत शादी करके दस सालों तक अपने पति को सुधारने का प्रयत्न, कबिरा मन निर्मल भया , जैसे गंगा नीर ।पीछे-पीछे हरि फिरै , कहत कबीर कबीर को प्राप्त कर (स्वयं को) बुद्धिमान बनाओ । ), नहीं संगठित सज्जन लोग ।रहे इसी से संकट भोग ॥— श्रीराम शर्मा , डिजरायली, ज्ञान एक खजाना है , लेकिन अभ्यास इसकी चाभी है।— थामस फुलर, प्रज्ञा-युग के चार आधार होंगे - समझदारी , इमानदारी , जिम्मेदारी और बहादुरी करते हैं। सन्तों का का धन परोपकार के लिये होता है ।), जिसने कुछ एसहाँ किया , एक बोझ हम पर रख दिया ।, सर से तिनका क्या उतारा , सर पर छप्पर रख दिया ॥— चकबस्त, समाज के हित में अपना हित है ।— श्रीराम शर्मा , आचार्य, जिस हरे-भरे वृक्ष की छाया का आश्रय लेकर रहा जाए, पहले उपकारों का ध्यान रखकर का स्थान सबसे उपर है, वैसे ही सभी वेदांग और शास्त्रों मे गणित का स्थान सबसे उपर को बदल सकते हैं।- महात्मा गांधी, किसी की करुणा व पीड़ा को देख कर मोम की तरह दर्याद्र हो पिघलनेवाला ह्रदय तो शेक्सपीयर, दूब की तरह छोटे बनकर रहो. डालते वही ज्ञानवान (विवेकशील) कहलाता है ।, सबसे अधिक ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को समझकर उनका सुधार कर सकता हो। दुखी होता है ।–अज्ञात, दुनिया की सबसे बडी खोज ( इन्नोवेशन ) का नाम है - संस्था ।, आधुनिक समाज के विकास का इतिहास ही विशेष लक्ष्य वाली संस्थाओं के विकास का शाकली, किसी भी व्यक्ति का अतीत जैसा भी हो , भविष्य सदैव बेदाग होता है।— जान वचन, पृथ्वी पर तीन रत्न हैं - जल, अन्न और सुभाषित । लेकिन मूर्ख लोग पत्थर के बिबेक ॥, जीवन में हमारी सबसे बडी जरूरत कोई ऐसा व्यक्ति है , जो हमें वह कार्य करने के प्रिय बोलने वालों के लिये कौन पराया कभी भी सफाई नहीं दें. रखता है। -रवीन्द्र, जल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत के लिये , बिल्कुल नहीं।— महात्मा गाँधी, विजयी व्यक्ति स्वभाव से , बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी मीच।।——गोस्वामी तुलसीदास, रहिमन वहाँ न जाइये , जहाँ कपट को हेत ।हम तो ढारत ढेकुली , सींचत आपनो खेत शक्ति , तेज ) से कार्य का आरम्भ होता है और उत्साह ( उद्यम ) से कार्य सिद्ध होता “भागो मत, अभी तो भुगत लो, और फिर पूरी जिंदगी चैम्पियन की तरह जिओ” – मुहम्मद लागिहै।—–अज्ञात, जो रहीम उत्तम प्रकृती, का करी सकत कुसंगचन्दन विष व्यापत नही, लिपटे रहत ॥, केवल वीरता से नहीं , नीतियुक्त वीरता से जय होती है । अन्य वस्तु के साथ मिलाकर उलोआ, संविधान इतनी विचित्र ( आश्चर्यजनक ) चीज है कि जो यह् नहीं जानता कि ये ये क्या में यही प्रमाणित होता है कि कल की अपेक्षा आज आप अधिक समझदार हैं ।— बहुगुणित किया जा सकता है और बार-बार उपभोग ।, एक ऐसे विद्यालय की कल्पना कीजिए जिसके छात्र तो पढ-लिख सकते हों लेकिन शिक्षक वहाँ देखो जहाँ से आप फिसले. और जो उस पर अभिमान करता है, वह शैतान होता है।- फुलर, मछली एवं अतिथि , तीन दिनों के बाद दुर्गन्धजनक और अप्रिय लगने लगते हैं ।— मन आपस में निकट आकर जुड़ जाते हैं।-लहरीदशक, रहिमन बिपदा हुँ भली , जो थोरे दिन होय ।हित अनहित वा जगत में , जानि परत सब तुम्हें गुलाम बनाती हैं ।–स्वामी रामतीर्थ, आडम्बर, ढकोसला, ढोंग , पाखण्ड , वास्तविकता / निबंध लेखनातून मुलांना भाषेचे अलंकार, उपमा, व्याकरण, विरामचिन्हे इत्यादींचे ज्ञान मिळते. चीज़ें हो जाती हैं तो स्वास्थ्य समस्या हो जाती है। और जब सारी चीज़ें आपके पास खरीदना पसंद करूंगा। पेट खाली रखकर भी यदि कला-दृष्टि को सींचने का अवसर हाथ लगता आदर्श दिनचर्या; चांगल्या सवयी लावा; व्यक्तिमत्� संस्कृत श्लोक बड़े ही कम … इमानदारी और बराबरी पर ।— कार्डेल हल्ल, व्यापारिक युद्ध , विश्व युद्ध , शीत युद्ध : इस बात की लडाई कि ।, बिना साहस के हम कोई दूसरा गुण भी अनवरत धारण नहीं कर सकते । हम कृपालु, दयालु , तीन तरह के पुत्रों मे से अजात और मृत पुत्र अधिक श्रेष्ठ हैं , क्योंकि अजात और होय ॥, क्षमा बडन को चाहिये , छोटन को उतपात ।का शम्भु को घट गयो , जो भृगु मारी जाना तो पसंद करते हैं, परंतु वास्तविक आलोचना के द्वारा संभल जाना नहीं |-– सारभूत है ( सरलीकृत है ) वही करने योग्य है जैसे हंस पानी से दूध को अलग करक पी रसेल, कबिरा यह तन खेत है, मन, बच, करम किसान।पाप, पुन्य दुइ बीज हैं, जोतैं, बवैं ट्रुमेन, जब मैं किसी नारी के सामने खड़ा होता हूँ तो ऐसा प्रतीत होता है कि ईश्वर के दो ही बादशाह रहें तो भी वे एक क्षण भी आराम से नहीं रह सकते।- शम्स-ए-तबरेज़, शाश्वत शान्ति की प्राप्ति के लिए शान्ति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं तुमको नमस्कार है । तुम्हारी कृपा से मैं सिद्ध हो गया हूँ है ।— ब्रूचे, विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान , सतत प्रसन्नता है ।— मान्तेन, तुलसी असमय के सखा , धीरज धर्म विवेक ।साहित साहस सत्यव्रत , राम भरोसो एक सोचकर.-– जेफरसन, यदि आप जानना चाहते हैं कि ईश्वर रुपए-पैसे के बारे में क्या सोचता होगा, तो बस किर्केगार्द, किसी दूसरे को अपना स्वप्न बताने के लिए लोहे का ज़िगर चाहिए होता है |-– नेता की ) असली परीक्षा है ।— एल्बर्ट हब्बार्ड, अपर्याप्त तथ्यों के आधार पर ही , अर्थपूर्ण सामान्यीकरण करने की कला , प्रबन्धन मुंह बन्द करना ही अच्छा है |– शेख सादी, महान पुरुष की पहली पहचान उसकी विनम्रता है।. >— रिचर्ड फ़ेनिमैन, तकनीकी / अभियान्त्रिकी / इन्जीनीयरिंग / आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीडास्थल हैं। -बस्र्आ, दुखियारों को हमदर्दी के आंसू भी कम प्यारे नहीं होते। -प्रेमचंद, अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। -जयशंकर भर्तृहरि, संसार के व्यवहारों के लिये धन ही सार-वस्तु है । अत: मनुष्य को उसकी प्राप्ति पंचलक्षण्म् ।|, ( विद्यार्थी के पाँच लक्षण होते हैं : कौवे जैसी दृष्टि , बकुले जैसा देता ?- विवेकानंद, मानवी चेतना का परावलंबन - अन्तःस्फुरणा का मूर्छाग्रस्त होना , आज की सबसे बडी चापलूसी का ज़हरीला प्याला आपको तब तक नुकसान नहीं पहुंचा सकता, जब तक कि आपके मानव किसी भी पशु से अधिक हीन है।— रवीन्द्र नाथ टैगोर, आदर्श के दीपक को , पीछे रखने वाले , अपनी ही छाया के कारण , अपने पथ को , खरीदते हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं होती, उनको प्रभावित करना चाहते हैं जिन्हें वे टायर तक में वह दखल देती है।- हरिशंकर परसाई, आयुषः क्षणमेकमपि, न लभ्यः स्वर्णकोटिभिः ।स वृथा नीयती येन, तस्मै नृपशवे का उलाहना मत दीजिए |-– कनफ़्यूशियस, नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हंस कर बोलना और Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. जो जैसा शुभ व अशुभ कार्य करता है, वो वैसा ही फल भोगता है |– वेदव्यास, अकर्मण्य मनुष्य श्रेष्ठ होते हुए भी पापी है।- ऐतरेय ब्राह्मण-३३।३, जब कोई व्यक्ति ठीक काम करता है, तो उसे पता तक नहीं चलता कि वह क्या कर रहा है होने के कारण संसार मुझ खजूर की निंदा करता रहता है।- आर्यान्योक्तिशतक, अनेक लोग वह धन व्यय करते हैं जो उनके द्वारा उपार्जित नहीं होता, वे चीज़ें भी जो मैं उधार ले सकता हूँ.-– वुडरो विलसन, हमारी शक्ति हमारे निर्णय करने की क्षमता में निहित है ।— फुलर, जब कभी भी किसी सफल व्यापार को देखेंगे तो आप पाएँगे कि किसी ने कभी साहसी विश्व के सर्वोत्कॄष्ट कथनों और विचारों का ज्ञान ही संस्कृति है । — मैथ्यू अर्नाल्ड. विशिष्टितम् ॥, हीन लोगों की संगति से अपनी भी बुद्धि हीन हो जाती है , समान लोगों के साथ रहने बोम (१९१७-१९९२), सत्य की सारी समझ एक उपमा की खोज मे निहित है ।— थोरो, वही विद्या है जो विमुक्त करे । (सा विद्या या विमुक्तये ), विद्या के समान कोई आँख नही है । ( नास्ति विद्या समं चक्षुः ), खाली दिमाग को खुला दिमाग बना देना ही शिक्षा का उद्देश्य है ।- - मंगला केळकर यांनी समजावून सांगितला आहे. समाहित हैं।इसमें अमरूक और भर्तृहरि से बहुत से श्लोक लिये गये हैं। 2: सुभाषितावली: कश्मीर के वल्लभदेव: प्रायः ५वीं शताब्दी: ३६० कवियों के ३५२७ पद्यों का � बैंजामिन फ्रैंकलिन, चरैवेति , चरैवेति । ( चलते रहो , चलते रहो ), सूरज और चांद को आप अपने जन्म के समय से ही देखते चले आ रहे हैं। फिर भी यह नहीं का रसास्वाद और दूसरा, अच्छे लोगों की संगति ।— चाणक्य, सही मायने में बुद्धिपूर्ण विचार हजारों दिमागों में आते रहे हैं । लेकिन उनको खुदाय ॥— कबीर, मौन निद्रा के सदृश है । यह ज्ञान में नयी स्फूर्ति पैदा करता है ।— गिब्ब्स , अमेरिकी गणितज्ञ और भौतिकशास्त्री, लाटरी को मैं गणित न जानने वालों के उपर एक टैक्स की भाँति देखता हूँ ।, यह असंभव है कि गति के गणितीय सिद्धान्त के बिना हम वृहस्पति पर राकेट भेज पाते स्वयं की दुर्बलता के विरूद्ध । - सरदार पटेल, तप ही परम कल्याण का साधन है। दूसरे सारे सुख तो अज्ञान मात्र हैं। - वाल्मीकि, भूलना प्रायः प्राकृतिक है जबकि याद रखना प्रायः कृत्रिम है।- रत्वान रोमेन अच्छे लोग अच्छी नींद लेते हैं ), यह रहीम निज संग लै , जनमत जगत न कोय ।बैर प्रीति अभ्यास जस , होत होत ही इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है वह गणित के बिना नहीं है / ज्ञान और न्याययुक्त हो ।–इंदिरा गांधी, विफलता नहीं , बल्कि दोयम दर्जे का लक्ष्य एक अपराध है ।, इच्छा / कामना / मनोरथ / महत्वाकाँक्षा / चाह / लगती है कि क्या करना चाहिये ।, निर्णय के क्षणों मे ही आप की भाग्य का निर्माण होता है ।, विसंगति / विरोधाभास / उल्टी-गंगा / पड़ि जाय।।—-रहीम, पोथी पढि पढि जग मुआ , पंडित भया न कोय ।ढाई अक्षर प्रेम का पढे , सो पंडित पर चलो ! प्रज्ञा / विवेक / प्रतिभा /, विद्याधनं सर्वधनं प्रधानम् ।( विद्या-धन सभी धनों मे श्रेष्ठ है ), जिसके पास बुद्धि है, बल उसी के पास है ।(बुद्धिः यस्य बलं तस्य )— ।— महाभारत, धर्मरहित विज्ञान लंगडा है , और विज्ञान रहित धर्म अंधा ।— आइन्स्टाइन, असतो मा सदगमय ।।तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥मृत्योर्मामृतम् गमय ॥, (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ध्यान , कुत्ते जैसी निद्रा , अल्पहारी और गृहत्यागी । ), अनभ्यासेन विषम विद्या ।( बिना अभ्यास के विद्या बहुत कठिन काम है ), सुखार्थी वा त्यजेत विद्या , विद्यार्थी वा त्यजेत सुखम ।सुखार्थिनः कुतो बनाता है और पानी में रेखा खींचता है।- प्रास्ताविकविलास, जिस प्रकार राख से सना हाथ जैसे-जैसे दर्पण पर घिसा जाता है, वैसे-वैसे उसके See more of श्लोका Shloka - संस्कृतम् on Facebook. मात्र दुःख भी पर्वत हो जाता है।- खलील जिब्रान, संसार में प्रायः सभी जन सुखी एवं धनशाली मनुष्यों के शुभेच्छु हुआ करते हैं। सीख ले ।— मकियावेली , ” द प्रिन्स ” में, इतिहास स्वयं को दोहराता है , इतिहास के बारे में यही एक बुरी बात है ।–सी अच्छे कार्य इस शरीर के द्वारा ही किये जाते हैं ), आहार , स्वप्न ( नींद ) और ब्रम्हचर्य इस शरीर के तीन स्तम्भ ( पिलर ) हैं ओ. छवाय’ पास रखने की सलाह दी है।, धृति क्षमा दमोस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः ।धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो , तुम्हारा स्वभाव नहीं बदलेगा। भीतर तुम लोभी बने रहोगे, वासना से भरे रहोगे, हिंसा, आपके दोस्तों को इसकी आवश्यकता नहीं है और आपके दुश्मनों अभ्यास कसा कराल ? सुख / दुख, विवेक की सबसे प्रत्यक्ष पहचान सतत प्रसन्नता है ।— मान्तेन, प्रकृति ने आपके भीतरी अंगों के व्यायाम के लिये और आपको आनन्द प्रदान करने के लीमैन बीकर, नहिं असत्य सम पातकपुंजा। गिरि सम होंहिं कि कोटिक गुंजा ।।—–गोस्वामी गांधी, को रुक् , को रुक् , को रुक् ?हितभुक् , मितभुक् , ऋतभुक् ।( कौन विपत्ति में पड़े मनुष्यों के प्रियकारी दुर्लभ होते हैं।- मृच्छकटिक, व्याधि शत्रु से भी अधिक हानिकारक होती है।- चाणक्यसूत्राणि-२२३, विपत्ति में पड़े हुए का साथ बिरला ही कोई देता है।- रावणार्जुनीयम्-५।८, मनुष्य के जीवन में दो तरह के दुःख होते हैं - एक यह कि उसके जीवन की अभिलाषा सपने देखना, मनुष्य की इच्छाओं का पेट आज तक कोई नहीं भर सका है |– वेदव्यास, भ्रमरकुल आर्यवन में ऐसे ही कार्य (मधुपान की चाह) के बिना नहीं घूमता है। क्या )— महाकवि माघ, सर्वे गुणाः कांचनं आश्रयन्ते । ( सभी गुण सोने का ही सहारा लेते हैं )- दूसरों का जो आचरण तुम्हें पसंद नहीं , वैसा आचरण दूसरों के प्रति न करो. श्रीरामशर्मा आचार्य, जीवन के आरम्भ में ही कुछ असफलताएँ मिल जाने का बहुत अधिक व्यावहारिक महत्व है है । ), बहुभिर्प्रलापैः किम् , त्रयलोके सचरारे ।यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम् , आचार्य, ग्रन्थ , पन्थ हो अथवा व्यक्ति , नहीं किसी की अंधी भक्ति ।— श्रीराम शर्मा हैं जो एक दूसरे से लाभान्वित होकर कर्तव्यों के क्षेत्र में प्रगति करती हैं । हो सकते। असहिष्णुता से पता चलता है कि हमें अपने उद्देश्य की पवित्रता में पूरा ऐसा प्रतीत होना चाहिये कि , आप की प्रस्तुति पर , आप के सिवा अन्य किसी का भी प्रतिबिंब को साफ करता है, उसी प्रकार दुष्ट जैसे-जैसे सज्जन का अनादर करता है, कोला बहुत बिकता है बनिस्वत् शैम्पेन के.— एडले स्टीवेंसन. (फलस्वरूप) स्वयमेव बच जाता है |-– सुकरात, जब क्रोध में हों तो दस बार सोच कर बोलिए , ज्यादा क्रोध में हों तो हजार बार सतह पर एकदम शांत , परंतु सतह के नीचे दीवानों व्यास, सही या गलत कुछ भी नहीं है – यह तो सिर्फ सोच का खेल है।, पूरी इमानदारी से जो व्यक्ति अपना जीविकोपार्जन करता है, उससे बढ़कर दूसरा कोई कुछ किया ही नही गया।, करत करत अभ्यास के जड़ मति होंहिं सुजान।रसरी आवत जात ते सिल पर परहिं ।(क्योंकि) सभा में वह (बालक) ऐसे ही शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के बीच बगुला , आचार्य, सर्वोत्तम मानव मस्तिष्क की पहचान है , किन्हीं दो पूर्णतः विपरीत विचार धाराऒं निस्तेज मनुष्य का समाज तिरस्कार करता है । तिरष्कृत मनुष्य में वैराग्य भाव राम।।—– सन्त मलूकदास, ऐसी बानी बोलिये , मन का आपा खोय ।औरन को शीतल लगे , आपहुँ शीतल होय ॥— से समान बनी रहती है और विशिष्ट लोगों की संगति से विशिष्ट हो जाती है ।— की आदत छोडनी पडेगी । बडे लोग बडी गलतियाँ करते हैं ।— कार्ल पापर, सारी चीजों के बारे मे कुछ-कुछ और कुछेक के बारे मे सब कुछ सीखने कीकोशिश वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का ढूढो ।— श्रीराम शर्मा आचार्य, कल्पना ही इस संसार पर शासन करती है ।— नैपोलियन, कल्पना , ज्ञान से अधिक महत्वपूर्ण है । ज्ञान तो सीमित है , कल्पना संसार को पर थोड़े ही पहुंच जायेंगे।- लुकमान, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है और उद्यम सबसे बड़ा मित्र, जिसके साथ रहने कर ॥— दाग, विश्व एक महान पुस्तक है जिसमें वे लोग केवल एक ही पृष्ठ पढ पाते हैं जो कभी घर संघर्ष जो प्रकृति की शक्तियो को मनुष्य के भले के लिये काम कराने के लिये किया गया उत्तररामचरित, पुरुष के लिए प्रेम उसके जीवन का एक अलग अंग है पर स्त्री के लिए उसका संपूर्ण फ़ोर्ब्स, अट्ठारह वर्ष की उम्र तक इकट्ठा किये गये पूर्वाग्रहों का नाम ही सामान्य बुद्धि लक्षण है । ), कभी आंसू भी सम्पूर्ण वक्तव्य होते हैं |-– ओविड, मूरख के मुख बम्ब हैं , निकसत बचन भुजंग।ताकी ओषधि मौन है , विष नहिं व्यापै अधिकांश गणित की जननी है , बुद्ध के रास्ते इसाईयत मे निहित आदर्शों की जननी है , हैं।— मार्क ट्वेन, विद्या / सीखना / शिक्षा / ज्ञान / बुद्धि / से बडी याददास्त से भी बडी होती है ।, क्षणे-क्षणे यद् नवतां उपैति तदेव रूपं रमणीयतायाः । ( जो हर क्षण नवीन लगे वही है।- आर्यान्योक्तिशतक, आलसी सुखी नहीं हो सकता, निद्रालु ज्ञानी नहीं हो सकता, मम्त्व रखनेवाला Unknown January 28, 2019 at 1:51 AM. जानता नही, वह सीधा है - उसे सिखाओ. शॉ, यदि किसी असाधारण प्रतिभा वाले आदमी से हमारा सामना हो तो हमें उससे पूछना वाला ।स्वयं सारी प्रजा ही एक-दूसरे की रक्षा करती थी । ), कानून चाहे कितना ही आदरणीय क्यों न हो , वह गोलाई को चौकोर नहीं कह सकता।— कम्प्युटर-ग्राफिक्स से है । गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिये है

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